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“कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखा “

aaj ka bharat
aaj ka bharat
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मेरी एक मित्र द्वारा मुझे प्रेषित एक कविता ……

आखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखा ,
बेवक्त अगर जाउंगी सब चौंक पड़ेंगे ,
इस उम्र में दिन में कभी घर नहीं देखा,
जिस दिन से चली हूँ मेरी मंजिल पे नजर है ,
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा,
ये जो फूल है मुझे विरासत में ना मिले ,
किसी ने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा,
पत्थर मुझे कहते है मेरे चाहने वाले,
“मैं” मोम हूँ उसने मुझे छुकर नहीं देखा!

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