aaj ka bharat
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मेरी एक मित्र द्वारा मुझे प्रेषित एक कविता ……
तुम्ही- से अस्तित्व में हूँ आज ऐ दोस्त ,
जब – जब चली आंधियां,
तुम वृक्ष बनकर खड़े हुए,
जब जब चले तूफ़ान,
तुम सिला बनकर अड़े रहे,
जब-जब मुसीबतों का भंवर चला,
तुम ही उबार कर लाये,
हर एक राह – हर मंजिल पर,
पग – पग साथ चले,
जब- जब रात हुई अंधियारी अमावस की,
तुम चन्द्रमा बनकर आये !
” तुम्ही से अस्तित्व में हूँ आज ऐ दोस्त”
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