aaj ka bharat
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“मेरे एक अभिन्न मित्र द्वारा मुझे प्रेषित एक कविता”
“कुछ भी नहीं ,सोचा नहीं अच्छा बुरा !
देखा सुना कुछ भी नहीं !!
माँगा खुदा से हर वक़्त !
तेरे सिवा कुछ भी नहीं !!
देखा तुझे चाहा तुझे !
सोचा तुझे-पूजा तुझे!!
मेरी वफ़ा ,मेरी खता!
तेरी खता कुछ भी नहीं!!
जिस हमारी आँखों ने!
मोती बिछाये रात भर !!
भेजा उसे कागज वही!
हमने लिखा कुछ भी नहीं!!
और एक शाम की दहलीज पर!
बैठे रहे वो देर तक !!
आँखों से की बाते बहुत !
मुंह से कहा कुछ भी नहीं !!
दो चार दिन की बात है!
दिल खाक में मिल जायेगा!!
आग पर जब कागज रखा !
बाकि बचा कुछ भी नहीं !!
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